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युद्ध को लेकर गीता में क्या कहा गया है, कब युद्ध करना हो जाता है जरूरी

 ये पंक्ति तो आपने जरूरी सुनी होगी, जिसमें कहा गया है- विश्व की पुकार है ये भागवत का सार है कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है. कौरवों की भीड़ हो या पांडवों का नीर हो जो लड़ सका है वही तो महान है.

आज दुनियाभर के कई देशों में युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है, तो वहीं कुछ देशों में युद्ध चल भी रहे हैं. हाल ही भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan Tension) के बीच युद्ध जैसी स्थिति देखने को मिली. जब पहलगाम (pahalgam attack) में भारतीयों पर आतंकी हमला किया गया और 26 लोगों की मौत हो गई, जिसका बदला भारतीय सैनिकों ने ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) से लिया.

हम सभी जानते हैं कि, युद्ध किसी भी स्थिति में सुखद नहीं होता. लेकिन न्याय, आत्मरक्षा, प्रतिशोध आदि कई ऐसे कारण हैं जब युद्ध करना जरूरी भी हो जाता है. अगर युद्ध को धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो स्वंय श्रीकृष्ण न्याय युद्ध के बारे में बताते हैं.

द्वापर युग में भी धर्म रक्षा के लिए महाभारत युद्ध हुआ था, जोकि पूरे 18 दिनों तक चला था. लेकिन महाभारत (Mahabharat) केवल युद्ध नहीं था, बल्कि यह ऐसा युद्ध था जिसमें घटित हुई घटनाएं आज भी लोगों को शिक्षा प्रदान करती है. महाभारत युद्ध के दौरान ही कुरुक्षेत्र की रणभूमि में गीता उपदेश की उत्पत्ति हुई. महाभारत युद्ध होने के कई कारण थे, जैसे दुर्योधन का अहंकार, द्रौपदी का दुर्योधन को अंधे का पुत्र कहना, द्रौपदी का चीरहरण, कौरवों का राजपाट हड़पने की लालसा और पुत्र मोह में डूबे धृतराष्ट का अर्थ-अनर्थ का भेद भूल जाना.

युद्ध का कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन श्रीकृष्ण ने न्याय युद्ध को सर्वोपरि रखा है. इसलिए न्याययुद्ध को धर्मयुद्ध की श्रेणी में रखा जाता है. श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब अन्याय चरम पर पहुंच जाए और सभी तरीके अपना लेने के बाद भी समस्या का हल न हो तो इस पर काबू पाने का एकमात्र विकल्प बस युद्ध ही है, जिसे अवश्य करना चाहिए. अगर युद्ध की आवश्यकता है और आप इससे भागते हैं तो आप पाप के भागीदार बन जाते हैं.

"हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥"

इस श्लोक के माध्यम से श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि, युद्ध में अगर तुम वीरगति को प्राप्त होते हो तो स्वर्ग जाओगे और अगर युद्ध के बाद बच जाते हो तो धरती का सुख भोगोगे. इसलिए उठो अर्जुन और निश्चय करते युद्ध करो.  

युद्ध टल सके तो टाल देना चाहिए

श्रीकृष्ण ने गीता में यह भी कहा है कि, युद्ध के सृजन से पहले विनाश होता है. इसलिए किसी भी परिस्थिति को बदलने के लिए युद्ध को कभी भी पहला विकल्प नहीं मानना चाहिए. सबसे पहले परिस्थिति को अहिंसापूर्वक सुलझाने का प्रयास करें और अगर आवश्यकता न हो तो युद्ध को टालने में ही भलाई है.

हाल ही में पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी काफी बढ़ गई, जिसके बाद युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. जबकि यह सभी को पता था कि अगर युद्ध होता है तो नुकसान दोनों देशों का होगा. ऐसे में सीजफायर का विकल्प ढूंढा गया, जिसके बाद दोनों देशों ने अपने पैर पीछे कर लिए.